Saturday, January 30, 2010

दर्द

कठिन नहीं होता
चुप-सी चीख 
पी जाना
पत्थर-सा
दर्द सह जाना
सच कहता हूं
कभी नहीं खलता
रक्त के बहाने 
हृदय का बह जाना
तकलीफ
तब होती है
जब 
कोई आंख मूंद
होंठ सी-कर
हंसता है 
किसी की 
पीड़ा पर
पीसता है नमक
गहरे घाव पर
थोड़े-भर 
स्वाद के लिए
और,
नमकीन मिजाज के लिए।।

4 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह बहुत खूब बेहतरीन रचना लिखी है मजा आ गया पढ़कर

Unknown said...

its nice & uniq

Nishant said...

बहुत बढ़िया दोस्त.... क्या बात है...

संजय भास्‍कर said...

... क्या बात है...