Wednesday, January 27, 2010

क्षणिका-4


कालिंदी के कूल
कभी 
तुम फिर आओ
भ्रमर 
मेरा मन
हृदय कमल पर
बैठ तुम्हारे
गुनगुन गाए
मनभर नाचे
तनभर झूमे
डूब सके
जितना डूबे
इस बार
बिना बंसी 
छेड़ो
बस 
जीवन के तार 
सुन सके 
न कोई
और 
देख न सके
मिलन 
विरही प्राणों का
डरती हूं 
सब फिर कह देंगे
पगली राधा।






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