Sunday, November 27, 2011

क्षण-क्षण-१

1-कंपन का अर्थ है झूठा व्यक्तित्व। शारीरिक-मानसिक-नैतिक...और सबसे बढ़कर आध्यात्मिक रूप से असहाय। आत्मा से क्षीण जीव हरक्षण कांपता है। आत्मा का अर्थ है-सत्य के सर्वाधिक निकट अस्तित्व।​
​2-सुना है जो डर गया वो मर गया। लेकिन जो मरने के बाद भी डरता रहे, उसका क्या। ​

Wednesday, November 16, 2011

क्षण-क्षण

जो तुम्हारा सच है और जो मेरा सच है, दोनों में ठीक उतना ही अंतर है जितना असली एवं नकली सोने में। मेरा सत्य स्वयं से दीप्त है और तुम्हारा सत्य तुम्हारी भ्रष्ट आत्मा पर चढ़ाया गया चमकीला मुलम्माभर।

वे नश्तर चुभो रहे थे...बार-बार...यहां-वहां...पूरी देह में। मैं सहता रहा...देह मेरी थी..वेदना मुझे थी...मैंने नश्तर छीना और कलेजे में उतार लिया। अब मैं वेदना से मुक्त हूं।

जब तुमपर उंगली उठे तो पहले उसकी दिशा देखो, फिर अपनी ओर। उंगली उठती ही जाए तो समझो, कि अब तलवार निकालकर उंगली उठानेवाले का हाथ काट देने का वक्त आ गया है, बशर्त्त तुम सही हो।