तदात्मानं सृजाम्यहम्
Friday, January 1, 2010
उद्बोधन
अरि-विनाश के लिए
शीश पर
असिप्रहार के लिए
धार ही नहीं
भुजाओं में बल हो।
मांस देह का नहीं
चाहिए वो,
विदेह हो भले
हड्डियों में, परन्तु
जिसके दधीचि
प्रतिपल हो।
नहीं तुम्हारे बस का है
ये समर महा
जीतेगा बस वही-
और, जीएगा-
जिसका रक्त बहा
जिसने घात सहा।
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