Sunday, October 23, 2011

दीपपर्व


हाथ में काठ लिए​
​मन में कुछ गांठ लिए​
​और झूठी ठाठ लिए​
​जीवन भर सोचते रहे​
सिर के बाल नोचते रहे​
​और सबको कोसते रहे​​
​अंधेरा हटाना है​​
​कलंक मिटाना है​
​छछूंदर को डराना है​
​दिख न सका तथ्य यह​
​भंगुर यह, मृत्य यह​
​तमस कहां सत्य यह
अजी, किसको​​ मिटाना है​
​किसको हटाना है​
​और क्यों किसी को डराना है​​
​ये जो हाथ का काठ है​
​मन की जो गांठ है​
​और झूठा जो ठाठ​ है​
​यही असल रोग है​
मृत्यु-मरण योग है​
​​मनुजता का सोग है​
जो करना-कराना है​
वो यह कि गीत एक गाना है​
​और, नन्हा-सा दीपभर जलाना है।।​
​दीपपर्व की मंगलकामनाओं के साथ-​
​आशुतोष