कुछ न कुछ तो कहना होगा।
मुक्तकंठ से गाना होगा
या चुप रहकर सहना होगा।।
Wednesday, March 10, 2010
Sunday, March 7, 2010
हया
भय और संकोच ने
घेर लिया
कुछ क्षण को धड़कनें
थम गईं
ऐसा लगा
चेहरा लाल हो गया
पोर-पोर ढीला
पैर कांप गए
नजर फिर गई
सच कहती हूं
मैं पहली बार
हया के मारे मर गई..
हुआ यूं कि-
रोज जिस आईने को -
देखती थी बन-संवरकर
उस आईने ने
देखना सीख लिया
और आज
जब मैं
नहा-धोकर
अचानक खड़ी हुई
सामने
मुझ
हास्यवदना
सिक्तवसना को
चोर आंखों से
उसने देख लिया।।
घेर लिया
कुछ क्षण को धड़कनें
थम गईं
ऐसा लगा
चेहरा लाल हो गया
पोर-पोर ढीला
पैर कांप गए
नजर फिर गई
सच कहती हूं
मैं पहली बार
हया के मारे मर गई..
हुआ यूं कि-
रोज जिस आईने को -
देखती थी बन-संवरकर
उस आईने ने
देखना सीख लिया
और आज
जब मैं
नहा-धोकर
अचानक खड़ी हुई
सामने
मुझ
हास्यवदना
सिक्तवसना को
चोर आंखों से
उसने देख लिया।।
तुक-तुक
एक बार जल जाने से
अच्छा रोज सुलगना है..
घनीभूत हो धूम
एकदिन
जलकण में परिवर्तित होगा
और, किसी चातक-जीवन की
इस जल ही से प्यास बुझेगी।।
अच्छा रोज सुलगना है..
घनीभूत हो धूम
एकदिन
जलकण में परिवर्तित होगा
और, किसी चातक-जीवन की
इस जल ही से प्यास बुझेगी।।
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