Sunday, March 7, 2010

तुक-तुक

एक बार जल जाने से
अच्छा रोज सुलगना है..
घनीभूत हो धूम 
एकदिन 
जलकण में परिवर्तित होगा
और, किसी चातक-जीवन की
इस जल ही से प्यास बुझेगी।।

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

....वाह भई वाह .... बहुत खूब!

harshant said...

apki lekhani or aap dono bemisal ho.