तदात्मानं सृजाम्यहम्
Thursday, January 21, 2010
मेरे तुम
जब तुम
रेत रहे थे
गला
जाग रहा था
मैं
चीख
हलक तक
आकर
ठहर गई
जब
अहसास हुआ
वो अंगुलियां
तुम्हारी हैं
और, नश्तर
मार ही डालेगा
चाहे धंसकर
चाहे हंसकर।
2 comments:
संजय भास्कर
said...
प्रशंसनीय रचना - बधाई
May 7, 2010 at 5:53 AM
Figment of Imagination
said...
आपकी रचनाये बहुत सुन्दर हैं.
May 28, 2010 at 1:59 PM
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2 comments:
प्रशंसनीय रचना - बधाई
आपकी रचनाये बहुत सुन्दर हैं.
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