Thursday, January 21, 2010

मेरे तुम


जब तुम 
रेत रहे थे 
गला
जाग रहा था
मैं 
चीख 
हलक तक
आकर 
ठहर गई
जब 
अहसास हुआ 
वो अंगुलियां
तुम्हारी हैं
और, नश्तर
मार ही डालेगा
चाहे धंसकर
चाहे हंसकर।

2 comments:

संजय भास्‍कर said...

प्रशंसनीय रचना - बधाई

Figment of Imagination said...

आपकी रचनाये बहुत सुन्दर हैं.