Saturday, November 13, 2010

मुर्दाघर


कभी-कभी ​
सारा दृश्य​​
​बदल जाता है
​संसार
​मुर्दाघर सा लगता है​
​लोगबाग​
​बस दौड़ती हुई लाशें​
​कभी-कभी ​
लगता है
​यहां कुछ ​
​जिंदा नहीं है​
कुछ मुर्दाखोर हैं​
​और, कुछ-
​चीर-फाड़ करने वाले​​
कृत्रिम रुदन है​
​घुटी हुई चीखें
​सड़े हुए मांस​
​और, उनसे रिसता​
​​लिजलिजापन
इस लिजलिजेपन में​
सहमी हुई-सी ​
​कुछ ​जिंदगियां..
​​मन करता है​
​उन्हें बचा लूं
​पर, ​क्या करूं
​इन मरे हुए लोगों का​
​मुर्दाखोरों का​
​​इन्हें दिलासा दूं​
​सहानुभूति जताऊं​
​व्यवस्था से​
​शिकायत करूं
अथवा, समूचे श्मशान में​
​आग लगा दूं...

11 comments:

vandana gupta said...

बहुत आक्रोश है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इन्हें दिलासा दूं​
​सहानुभूति जताऊं​
​व्यवस्था से​
​शिकायत करूं
अथवा, समूचे श्मशान में​
​आग लगा दूं...

व्यवस्था का लिजलिलापन साफ़ झलक रहा है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 16 -11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

http://charchamanch.blogspot.com/

Yashwant R. B. Mathur said...

व्यवस्था से​
​शिकायत करूं
अथवा, समूचे श्मशान में​
​आग लगा दूं...

मन के आक्रोश को अच्छे शब्द दिए हैं आपने.

महेन्‍द्र वर्मा said...

पर ​क्या करूं
​इन मरे हुए लोगों का​
​मुर्दाखोरों का​
​​इन्हें दिलासा दूं​
​सहानुभूति जताऊं​
​व्यवस्था से​
​शिकायत करूं
अथवा समूचे श्मशान में​
​आग लगा दूं

संसार को एक भिन्न दृष्टिकोण से अपलक निहारती हुई कविता।
...शिल्प और भाव दोनों अद्भुत।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

अरे वाह...! यहाँ ‘दौड़ती हुई लाशें​’ और मेरे ब्लॉग पर ‘चलायमान लाशें’ कितना बड़ा संयोग...!

आपके पास जो वैचारिक ऊष्मा है, उसका प्रसार चतुर्दिक हो सके तो देश व समाज का चिंतन बदलने की कोई सूरत निकल सकती है...!

M VERMA said...

तंज का स्वर है ये और फिर क्यूँ न हो

Amrita Tanmay said...

आपने ब्लॉग का नाम बहुत अच्छा रखा है ... शायद आपका व्यक्तित्व भी झलकता है ..आपको पढ़ना अच्छा लग रहा है . जब रचनाएँ सत्य को चित्रित करती है तो जीवंत हो जाती है ,..आपकी रचनाएँ ऐसी ही है . आपको शुभकामनाएं ..

प्रेम सरोवर said...

Mujhe aisa pratit hota hai ki aapne jindagi ke har pahlu ko najdik se dekha ,samajha aur anubhav kiya hai. sahi satya ko udghatit kiya hai jise nakara nahi ja sakata hai. Achha post.Plz. visit my blog.

ZEAL said...

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सत्य को दर्शाती एक उत्कृष्ट रचना ।

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