Wednesday, November 3, 2010

ह्रदयदीप


हर दीया
माटी का है
बुझ जाएगा​​
तेल चुकेगा
​​बाती भी
जल जाएगी​​
तिमिर घना
घिर आएगा
घात लगेंगे​...
​​​​तन छीजेगा
मन टूटेगा
कठिन बहुत
जीना होगा
विष ही
पीना होगा​?
विष पीकर भी
प्राण धरेंगे
अमरित का
उत्सर्ग करेंगे
दीया टूटे
बाती रूठे
तेल चुके
सब साथी छूटें
किंतु, ​ तम से
हारेंगे
दीप ह्रदय का
बारेंगे
माटी के क्यों
दीप धरेंगे​​
क्षणभंगुर से
प्रीति करेंगे​!​ ​
जब तक मन
चैतन्य भरा है
और, ह्रदय में
प्रेम खरा है
हम ही बाती
दीप बनेंगे
उस चिन्मयकी
ज्योति बनेंगे
तेल नहीं यह रीतेगा
और, प्राण छीजेगा
फिर, शाश्वत
भरमन होगा
दीपोत्सव
हरक्षण होगा।।
(​आप सभी को दीपपर्व की मंगलकामना।)​

3 comments:

Amrita Tanmay said...

आपका ह्रदयदीप समस्त संसार को रोशनी दिखाए ... सुन्दर रचना ... आपको शुभकामनाएं ........

Amrita Tanmay said...

आपका ह्रदयदीप समस्त संसार को रोशनी दिखाए ... सुन्दर रचना ... आपको शुभकामनाएं ........

Amrita Tanmay said...
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