Tuesday, February 2, 2010

स्वप्न और जिंदगी


आंख खुली होती है
स्वप्न सोया होता है
आंख बंद होती है
स्वप्न देह धरता है..
यदि जिंदगी
आंख खोलना
और
बंद करना भर है..
तो झूठ है..
कौन है-
जो स्वप्नों से
परे जीता है
और जिंदगी के
सत्य तक जागता है।।

3 comments:

मोहन वशिष्‍ठ said...

वाह जी वाह बहुत खूब बेहतरीन रचना बधाई

ni:shabd said...

kash main bhi kabhi jagu is neend se...

Nishant said...

क्या बात है...