आगत के स्वागत का ये पल
विस्मृत कर दे दुःखभरा कल
मधु गीतों से झूम उठे मन
नयनों में भर सपन नवल
चल रे साथी...नई जगह चल।।
बहुत हो चुका रोना-धोना
न कुछ पाना न अब खोना
धरती से उठकर चल दें
बनें शून्य का नीलकमल।।
चल रे साथी...नई जगह चल।।
बरस-बरस बस बीत रहा
आगत कभी अतीत रहा
अब यथार्थ को जीना सीखें
बहुत सह चुके समय का छल।
चल रे साथी...नई जगह चल।।
1 comment:
सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
मनोभावों की अनुपम अभिव्यक्ति की है आपने.
नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
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