Sunday, January 1, 2012

चल रे साथी

आगत के स्वागत का ये पल​
​विस्मृत कर दे दुःखभरा कल​
​मधु गीतों से झूम उठे मन​
​नयनों में भर सपन नवल​
​​चल रे साथी...नई जगह चल।।​
​​
​बहुत हो चुका रोना-धोना​
​न कुछ पाना न अब खोना​
​धरती से उठकर चल दें​
​बनें शून्य का नीलकमल।।
चल रे साथी...नई जगह चल।। ​
​​
बरस-बरस बस बीत रहा​
​आगत कभी अतीत रहा​
​अब यथार्थ को जीना सीखें​​
​बहुत सह चुके समय का छल।​
​चल रे साथी...नई जगह चल।।

1 comment:

Rakesh Kumar said...

सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
मनोभावों की अनुपम अभिव्यक्ति की है आपने.

नववर्ष की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ.

समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.