Wednesday, September 14, 2011

क्षणिका

रात को दिन दिनों को रात करें।​
सही-गलत सही, कुछ तो बात करें।​।​
​​कोई कहे-न कहे पर छुपी रहेगी नहीं
​चोट खाए हुए कह देंगे जज्बात हरे।​
अकल जो होती तो आ जाती ​समझ ​​
​आग दामन में लिए कौन मुलाकात करे।।
​​आंख पुरनम, जुबां पे ​खामोशी ​
टूटे हुए हमदम कहां फरियाद करें।
​न कोई उज्र न शिकायत अब है
​चल ऐ दिल, इश्क की शुरुआत करें।।​

4 comments:

Rakesh Kumar said...

वाह! सुन्दर प्रस्तुति

​चल ऐ दिल, इश्क की शुरुआत करें।।​


आभार.

मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपका हार्दिक स्वागत है.

रश्मि प्रभा... said...

​​आंख पुरनम, जुबां पे ​खामोशी ​
टूटे हुए हमदम कहां फरियाद करें।
​न कोई उज्र न शिकायत अब है
​चल ऐ दिल, इश्क की शुरुआत करें।।​ waah

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूब ... शिकायतों में क्या रखा है ...

ZEAL said...

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हम क्या इश्क की शुरुवात करें, हम तो उठते-बैठते इश्क ही में डूबे रहते हैं । कोई समझे न समझे, लेकिन जिनसे दिल मिलते हैं वे बात-मुलाकात करें न करें , हम उनको और वे हमें महसूस कर ही लेते हैं। इश्क तो इसी को कहते हैं।

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