Thursday, March 31, 2011

इदन्नमम


चाहता हूं जब​
​कि, कह दूं​
​खिलखिलाकर तुम हंसो​
​एक बरछी वेदना की​
​घातिनी बन बींध जाती है...​

​​चाहता हूं जब​
​कि, तुम ​
दृढ़व्रती हो कुछ कहो​​
​वज्र-सी बिजुरी​
​हृदय को चीर जाती है...​
​​
​मौन में बैठे ​
​तुम्हें​ जब देखता हूं​​
​श्वास की गहराइयों में
​निर्दयी-सी पीर​
दृगभर नाच जाती है...
​​
​चाहता संवाद मन​
​जब तुम्हारे अश्रुओं से​
​कांपती कोई हवा​
​स्वर-शिखाओं को बुझा​
दीप-उर को तोड़ जाती है...​
​​
​क्या करूं निज नेह का​
​चाहता जो तुम हंसो​​
​अधर से लिपटी​
​विषैली वेदना को पंख दो​...
​​
​क्या करूं वो भावना​
​चाहती तुम मुखर हो​​
मरण-उन्मुख आस्था को​
​निज परस से प्राण दो...
​​
​मानता...हां, मानता हूं​
​मौन सबकुछ बोलता है...​​
​शब्द के सीमांत के​
​भेद सारे खोलता है
​किंतु, मेरे आत्मन!​
​प्रीति मेरे! प्राणघन​!
कैसे कहूं-निस्तब्धता​
​अब बहुत ही दाहती है...​
मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​

17 comments:

Unknown said...

achcha likha hai, likhte raho.

asheesh said...

shandar kavita kya kahana adbhut rachna

asheesh said...

मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​ shamapan kabilay tharif hai

अम्बर बाजपेयी said...

bahut accha likha hai sir

nagrik said...

​मौन सबकुछ बोलता है...​​

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...
This comment has been removed by the author.
संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कैसे कहूं-निस्तब्धता​
​अब बहुत ही दाहती है...​
मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​

बहुत गहन ...

आभार मेरे ब्लॉग पर आने का ..आशा है अब स्वास्थ्य ठीक होगा ..

Vijuy Ronjan said...

antarman ki baatein hriday ki vedna ko sitar kar deti...bahut hi acchi rachna...maun ki bhasha pakarna virle hi kar paate...aapne bakhubi nibhaya,.

Udan Tashtari said...

उम्दा रचना..

अजय कुमार said...

मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​

क्या बात है ,अच्छी रचना

रश्मि प्रभा... said...

​मानता...हां, मानता हूं​
​मौन सबकुछ बोलता है...​​
​शब्द के सीमांत के​
​भेद सारे खोलता है
​किंतु, मेरे आत्मन!​
​प्रीति मेरे! प्राणघन​!
कैसे कहूं-निस्तब्धता​
​अब बहुत ही दाहती है...​
मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​
utkrisht rachna

vandana gupta said...

मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​

बेह्द उत्तम भाव संयोजन्…………ना मौन मुखर होता है और मौन भी विषमय्…………वाह्।

दिगम्बर नासवा said...

कैसे कहूं-निस्तब्धता​
​अब बहुत ही दाहती है...​
मौन की विषमय तरलता
आत्मा को मारती है...​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​

bahut khoob ... moun kabhi kabhi cheer ke rakh deta hai ... seese ki tarak kaanon mein utar jaata hai ...

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

लयबद्ध, सुनियोजित और मानवीय भावनाओं को वेग देती अप्रतिम कविता प्रस्तुत करने वाले:-


मेरे आत्मन!​
​प्रीति मेरे! प्राणघन​!

हाँ! तुम्हारी लेखनी
को शताधिक हैं नमन
क्या प्रशंसा मैं करूँ
आपकी कृति है सघन
नाम ना मैं जानता
इसलिए कहता 'सजन'
बस यूँही लिखते रहो
वक्त की आवाज़ बन

मित्रवर, आप का नाम जानना चाहता हूँ|
http://samasyapoorti.blogspot.com
navincchaturvedi@gmail.com

तदात्मानं सृजाम्यहम् said...

आप सभी आत्मीय जनों को सप्रेम अभिवादन। ​उड़नतश्तरी भाई बोले तो समीरलाल जी का लंबे समय से इंतजार था। पहली बार उनका मेरे ब्लाग पर आना और तुकबंदियों को सराहना अच्छा लगा। रश्मि, वंदना, दिगम्बर भाई साहब...सभी को आभार। चतुर्वेदी जी ने नाम पूछा है...बता दूं.. मैं आशुतोष प्रताप सिंह​। मूलतः उत्तरप्रदेश के अवध प्रांत से हूं...प्रोफेशऩ पत्रकारिता है...इन दिनों चंडीगढ़/अंबाला रीजन में ऊठक-बैठक कर रहा हूं। मुक्तमन हूं...मोक्षकामी हूं...थोड़ा आध्यात्मिक..थोड़ा साहित्यिक हूं...।

ZEAL said...

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मेरे विचार से , मौन द्वारा संवादहीनता (communication gap) की दुखद स्थिति उत्पन्न होती है। संवाद के द्वारा ही बड़ी-बड़ी मुश्किलों का हल मिल जाता है। किसी भी एक व्यक्ति का ज्ञान पूर्ण नहीं होता , इसीलिए परिचर्चाओं की महत्ता है।अपनी-अपनी शिक्षा , संस्कार , परिवेश , अनुभवों, वय आदि के अनुसार अनेक विचारों के आ जाने से विषय सार्थक हो जाता है और एक बेहतर विकल्प बहुत से लोगों के सामने उपस्थित हो जाता है ।

संवाद स्थापित होने पर ही लोग एक दुसरे को बेहतर समझ सकते हैं , इससे ग़लतफ़हमियों की गुंजाइश नहीं रहती। एक आत्मविश्वास भी आता है , कार्य-क्षेत्र में उपयोगिता बढती है । जागरूकता बढती है , पहचान मिलती है और व्यक्ति, विषय और वस्तुस्थिति का बेहतर ज्ञान होता है। संवाद रिश्तों को बेहतर बनाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मन में पड़ी दरारों को भी भर देता है।

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ZEAL said...

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मौन से क्या हासिल होगा ? संवादहीनता तो लोगों के दिलों में दीवारें ही खड़ी कर रही है । मौन तो राजनीतिज्ञों की बपौती है । बड़े-बड़े घोटालों से निपटिये मौन नाम के ब्रम्हास्त्र से। मौन के नीचे बहुत कुछ ढका भी जा सकता है । घोटालों को , अपनी कमतरी को , अपनी अनिश्चितता को , अपने वैमनस्य को , अपनी दोहरी मानसिकता को भी ।

मेरे विचार से संवाद , व्यक्ति के आत्मविश्वास के परिचायक हैं जबकि मौन ,व्यक्ति के अन्दर घर किये हुए भय का।मौन केवल एक अवस्था में धारण करना चाहिए जबकि सामने वाला आपका अपमान करने के उद्देश्य से अनर्गल प्रलाप कर रहा हो, अन्यथा मौन रखने वाले को diplomatic या escapist कहेंगे। संवाद हर स्थिति में श्रेयस्कर है जबकि मौन सिर्फ विवाद की स्थिति में ही उचित है ।

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