आत्मीय जन, लंबे समय बाद एक क्षणिका उतरी है। सबको निवेदितl कर रहा हूं। स्वीकार करें- पाषाण नहीं, ये हृदयकमल है यहां हलाहल वर्जित है। मानसरोवर जिसका मन उसके लिए समर्पित है।।
इतने लम्बे समय तक अनुपस्थित रहकर आपने अपने आत्मीय जनों को जो कष्ट दिया है , उसके लिए माफ़ी नहीं मिल सकती । ये ह्रदय यदि कमल न होकर पाषाण होता तो गुस्ताखी माफ़ करना आसान होता।
मन को मानसरोवर करने की प्रक्रिया अभी हमें नहीं आती.मन का हलाहल कोई शिव पिये तो आपके ह्रदय कमल के दरसन करें.आशा है इसमें आप जरूर मदद करेंगे हमारी. आपके ब्लॉग पर डॉ.दिव्याजी के ब्लॉग पर आपके द्वारा की गयी टिपण्णी को पड़कर हुआ.बहुत अच्छा विश्लेषण है आपका . मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका सुस्वागत है .
मन को मानसरोवर करने की प्रक्रिया अभी हमें नहीं आती.मन का हलाहल कोई शिव पिये तो आपके ह्रदय कमल के दरसन करें.आशा है इसमें आप जरूर मदद करेंगे हमारी. आपके ब्लॉग पर डॉ.दिव्याजी के ब्लॉग पर आपके द्वारा की गयी टिपण्णी को पड़कर हुआ.बहुत अच्छा विश्लेषण है आपका . मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका सुस्वागत है .
5 comments:
chitr ko jeevant kar diya hai aapne.bahut sundar...
इतने लम्बे समय तक अनुपस्थित रहकर आपने अपने आत्मीय जनों को जो कष्ट दिया है , उसके लिए माफ़ी नहीं मिल सकती । ये ह्रदय यदि कमल न होकर पाषाण होता तो गुस्ताखी माफ़ करना आसान होता।
मन को मानसरोवर करने की प्रक्रिया अभी हमें नहीं आती.मन का हलाहल कोई शिव पिये तो आपके ह्रदय कमल के दरसन करें.आशा है इसमें आप जरूर मदद करेंगे हमारी.
आपके ब्लॉग पर डॉ.दिव्याजी के ब्लॉग पर आपके द्वारा की गयी टिपण्णी को पड़कर हुआ.बहुत अच्छा विश्लेषण है आपका .
मेरे ब्लॉग 'मनसा वाचा कर्मणा'पर आपका सुस्वागत है .
मन को मानसरोवर करने की प्रक्रिया अभी हमें नहीं आती.मन का हलाहल कोई शिव पिये तो आपके ह्रदय कमल के दरसन करें.आशा है इसमें आप जरूर मदद करेंगे हमारी.
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यहां हलाहल वर्जित है।
कमाल के शब्द.... बहुत सुंदर क्षणिका
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