Friday, July 27, 2012
तिवारी जी, जीते तुम्हीं हो...
लाइव टेलिकास्ट ने माहौल ऐसा रचा है कि देखे बिना नहीं रहा जाता। चश्मा उतारकर, सिर झुकाकर आंख पर हाथ फेरते एनडी तिवारी, चश्मा चढाए छाती तानकर तीक्ष्ण कटुक्तियों के सहारे सत्यविजय का उद्घोष करती उज्ज्वला शर्मा...। एक के बाद एक दोनों के चेहरों कैमरे पर नचाए जा रहे हैं । उज्ज्वला आज किलक रही हैं-तिवारी ऐसे, तिवारी वैसे। वो कह रही हैं-ये सत्य की जीत है। तनिक कोई पूछे किस सत्य की जीत है। सत्य रह ही कहां गया था इस षड्यंत्रकारी खेल में। क्या वो कोई अलग सत्य है जिसका दंभ उज्ज्वला भर रही हैं। सत्य तो उसी दिन मटियामेट हो गया था जिस दिन श्रीमती उज्ज्वला अपने श्रीमान बीपी शर्मा से बावस्ता होते हुए भी बारास्ता एनडी तिवारी मां बनने के लिए उनके बिस्तर में घुसी थीं। एक सत्य यह था कि वे किसी और की श्रीमती थीं। एक सत्य था कि उनके पति उन्हें मातृसुख दे पाने में अक्षम थे। एक सत्य था कि उनके भीतर वासना-पुत्रकामना बरजोर थी। एक सत्य था कि उन्हें इसके लिए किसी और के संग हमबिस्तर होने से कोई गुरेज न था। प्रेम के पांखड में एक आदमकद व्यक्तित्व से यौनेच्छा शांत करने की आग एक सत्य ही थी। डीएनए का सत्य यदि सत्य है तो यह साफ है कि बाकी सब सत्य भी शिखरसत्य हैं। इन सत्यों को सिद्ध करने के लिए किसी डीएनए परीक्षण की अनिवार्यता नहीं, किसी आयोग की आवश्यकता नहीं, किसी न्यायालय और न्यायमूर्ति की दरकार नहीं। एक डीएनए रिपोर्ट ने यह सब सिद्ध कर दिया है। उज्ज्वला जी, तुम एक सत्य जीतकर सौ सत्य हार गई हो और तिवारी जी एक सत्य हारकर भी बाक सब सत्य जीत गए हैं। अंतिम जीत उन्हीं की रही है।
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1 comment:
you are rightमोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
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