Wednesday, November 16, 2011

क्षण-क्षण

जो तुम्हारा सच है और जो मेरा सच है, दोनों में ठीक उतना ही अंतर है जितना असली एवं नकली सोने में। मेरा सत्य स्वयं से दीप्त है और तुम्हारा सत्य तुम्हारी भ्रष्ट आत्मा पर चढ़ाया गया चमकीला मुलम्माभर।

वे नश्तर चुभो रहे थे...बार-बार...यहां-वहां...पूरी देह में। मैं सहता रहा...देह मेरी थी..वेदना मुझे थी...मैंने नश्तर छीना और कलेजे में उतार लिया। अब मैं वेदना से मुक्त हूं।

जब तुमपर उंगली उठे तो पहले उसकी दिशा देखो, फिर अपनी ओर। उंगली उठती ही जाए तो समझो, कि अब तलवार निकालकर उंगली उठानेवाले का हाथ काट देने का वक्त आ गया है, बशर्त्त तुम सही हो।

2 comments:

Smart Indian said...

हम हरि के धन के रथ-वाहक,
तुम तस्कर, पर-धन के गाहक
हम हैं परमारथ-पथ-गामी,
तुम रत स्वारथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।
(~पण्डित नरेन्द्र शर्मा)

SANDEEP PANWAR said...

शब्द दिल को छू गये।