रात को दिन दिनों को रात करें।
सही-गलत सही, कुछ तो बात करें।।
कोई कहे-न कहे पर छुपी रहेगी नहीं
चोट खाए हुए कह देंगे जज्बात हरे।
अकल जो होती तो आ जाती समझ
आग दामन में लिए कौन मुलाकात करे।।
आंख पुरनम, जुबां पे खामोशी
टूटे हुए हमदम कहां फरियाद करें।
न कोई उज्र न शिकायत अब है
चल ऐ दिल, इश्क की शुरुआत करें।।
4 comments:
वाह! सुन्दर प्रस्तुति
चल ऐ दिल, इश्क की शुरुआत करें।।
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
आपका हार्दिक स्वागत है.
आंख पुरनम, जुबां पे खामोशी
टूटे हुए हमदम कहां फरियाद करें।
न कोई उज्र न शिकायत अब है
चल ऐ दिल, इश्क की शुरुआत करें।। waah
बहुत खूब ... शिकायतों में क्या रखा है ...
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हम क्या इश्क की शुरुवात करें, हम तो उठते-बैठते इश्क ही में डूबे रहते हैं । कोई समझे न समझे, लेकिन जिनसे दिल मिलते हैं वे बात-मुलाकात करें न करें , हम उनको और वे हमें महसूस कर ही लेते हैं। इश्क तो इसी को कहते हैं।
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