
हाथ में काठ लिए
मन में कुछ गांठ लिए
और झूठी ठाठ लिए
जीवन भर सोचते रहे
सिर के बाल नोचते रहे
और सबको कोसते रहे
अंधेरा हटाना है
कलंक मिटाना है
छछूंदर को डराना है
दिख न सका तथ्य यह
भंगुर यह, मृत्य यह
तमस कहां सत्य यह
अजी, किसको मिटाना है
किसको हटाना है
और क्यों किसी को डराना है
ये जो हाथ का काठ है
मन की जो गांठ है
और झूठा जो ठाठ है
यही असल रोग है
मृत्यु-मरण योग है
मनुजता का सोग है
जो करना-कराना है
वो यह कि गीत एक गाना है
और, नन्हा-सा दीपभर जलाना है।।
दीपपर्व की मंगलकामनाओं के साथ-
आशुतोष