
नए क्षितिज का गठन
नहीं करने आया
और, न सीमाओं में धंस
मरने आया।
दृढ चरण धरे
मन में
साहस का ज्वार।
मैं आया
तूफ़ान लिए
सागर के पार।
नए रास्ते
मुझे नहीं गढ़ने
मैं आया
विपदों का
उल्लंघन
करने।
रेख राह की
नहीं पुरानी
रखनी है,
विषदायी हर बेल
समूल
बिनसिनी है,
जितना संभव
जितना ज्यादा
नस कालकूट की
काटूंगा,
इस जगती के
अंधकूप सब
पाटूंगा।