Friday, May 7, 2010

शोकगीत

ऐ गीत,
उनसे जा कहो
यों हृदय 
मेरा न देखें
चंचला संध्या न देखें
सहमा हुआ
सवेरा न देखें
प्रीति के प्रारंभ में
सम्बंध सारे जोड़ लें
किंतु, इस सम्बंध की 
भावना के छंद की
आज ही आयु न पूछें
घाव का घेरा न देखें।
प्रणय की हर वेदना
यों भले ही क्रूर है
किंतु, उनके प्रेम की
हर क्रूरता मंजूर है
उनके समीप में
साथ में
मैं चाहता हर घात उनका
अपने कोमल हाथ में
उनसे कहो, ऐ गीत
वो भावभर मेरा न देखें
सौन्दर्य मुझमें खूब है
विरह से झुलसा हुआ
वो मेरा चेहरा न देखें।

7 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत गहरे एहसास..

मोहन वशिष्‍ठ said...

कुछ भी कहो आपकी अभिव्‍यक्ति मन को भा गई बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ढेरों बधाईयां आपको

पंकज मिश्रा said...

wah wah wah bahoot hi shandaar kya kahne.

मृत्युंजय त्रिपाठी said...

बेहतरीन। बहुत खूब। यूं ही बने रहिए, बिना रूके, लगातार।

सादर,
मृत्‍युंजय

THE INVINCIBLE said...

Hey buddy really great one mate....its touching the last four lines:
अब लगता है
उन बिन होना
न कुछ होना
कुछ न होना।।
are awesome...
I am fond of writting but,its my own rhythm,may be people don't like that and I am not that charismatic as you are...but bro its my humble request please visit my blog avinashsinghballia.blogsopt.com
all the best pal,may your name shine bright on the horizon of blogging..

Unknown said...

सौन्दर्य मुझमें खूब है
विरह से झुलसा हुआ
वो मेरा चेहरा न देखें।....

bahut hi badiya

Unknown said...
This comment has been removed by the author.